- पश्चिमी पंजाब में कूका आंदोलन की शुरुआत भगत जवाहरमल के नेतृत्व में हुआ।
- कूका आंदोलन भी प्रारम्भ में धार्मिक आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन शीघ्र ही यह राजनीतिक आंदोलन में बदल गया।
- सियान साहब के नाम से चर्चित जवाहरमल ने कूका आंदोलन की शुरुआत सिख पंथ में व्याप्त अंध विश्वास और बुराईयों को दूर करने के लिए किया।
- जवाहरमल के शिष्य बालक सिंह ने अपने अनुयायियों के साथ अपना मुख्यालय उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में स्थित 'हजारी' नामक स्थान को बनाया।
- कूका आंदोलन ने कालांतर में पंजाब से अंग्रेजों का प्रभुत्व समाप्त कर सिख प्रभुसत्ता की स्थापना को अपना लक्ष्य बनाया।
- इस आंदोलन को कुचलने के लिए सरकार ने 1863-72 में जोरदार अभियान चलाया।
- कूका आंदोलन के नेता रामसिंह कूका को सरकार ने रंगून निर्वासित कर दिया जहां उनकी 1885 में मृत्यु हो गई।
- अपदस्थ शासकों के आश्रितों द्वारा किये जाने वाले आंदोलनों में प्रमुख थे- रामोसी विद्रोह, गडकारी विद्रोह, सामंतवादी विद्रोह आदि।
रामोसी विद्रोह (1822 ई०)
- रामोसी विद्रोह 1822 ई० में शुरू हुआ था।
- इस विद्रोह में कभी मराठा सेना में सैनिक और सिपाही के रूप में कार्यरत मराठों ने मराठा साम्राज्य के पतन के बाद बढ़े हुए भूमि कर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
- 1822 में रामोसियों ने महाराष्ट्र के सतारा क्षेत्र में लूटपाट की।
- 1825-26 पड़े भयानक अकाल और अन्नाभाव के कारण रामोसियों ने उमाजी के नेतृत्व में दूसरी बार विद्रोह कर दिया।
- ब्रिटिश सरकार ने रामोसियों के विद्रोह को समाप्त करने के लिए उन्हें भूमि अनुदान दिया, साथ में ही पहाड़ी पुलिस में नौकरी भी दी।
गडकारी विद्रोह (1844 ई०)
- गडकारी विद्रोह 1844 ई० में कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में हुआ।
- गडकारी वे लोग थे जो मराठों के किलों में कार्यरत अनुवांशिक कर्मचारी थे।
- गडकारियों ने बढ़े हुए भू-राजस्व की वसूली के विरुद्ध विद्रोह किया था, सरकार को गडकारियों के विद्रोह को दबाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा।
- 1844 ई० में शुरु हुए सामंतवादी विद्रोह का नेता मराठा सरदार फोन्ड सावंत था।
- इन्होंने अन्य सरदारों और ईसाइयों जिसमें अन्नासाहिब भी शामिल थे, के सहयोग से दक्षिण भारत के अनेक किलों पर पुनः कब्जा कर लिया, लेकिन शीघ्र ही सरकार ने विद्रोह को कुचल दिया।
- उन्नीसवीं सदी में कुछ अपदस्थ भारतीय शासकों ने अंग्रेजों की विलय नीति, भारतीय शासकों को मनमाने ढंग से अपदस्थ करने तथा अंग्रेजी शासन की नीतियों के विरुद्ध आंदोलन किया।
बेलुटंपी विद्रोह (1808-9 ई०)
- बेलुटंपी विद्रोह 1808-9 में त्रावणकोर (केरल) में हुआ।
- अंग्रेजों द्वारा दीवान बेलुटंपी (त्रावणकोर) की गद्दी छीन लेने तथा सहायक संधि द्वारा त्रावणकोण राज्य पर भारी वित्तीय बोझ डालने के कारण दीवान बेलुटंपी ने विद्रोह कर दिया।
- गोलियों से घायल बेलुटंपी की मृत्यु के बाद अंग्रेजी सेना ने उसे सार्वजनिक रूप से फांसी पर लटकाया था।
जनजातीय (आदिवासी) विद्रोह, पहाड़िया विद्रोह, खोंड विद्रोह, कोल विद्रोह
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