बुधवार, 29 जनवरी 2025

भारत में शिक्षा का विकास (ब्रिटिश काल में)

 

  • 1813 ई० से पूर्व ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया गया।
  • 1813 ई० से पूर्व कुछ उदार अंग्रेजों, ईसाई मिशनरियों और उत्साही भारतीयों ने इस दिशा में प्रयास किया।
  • 1781 में गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने 'कलकत्ता मदरसा' की स्थापना की, जिसमें फारसी और अरबी का अध्ययन होता था।
  • 1778 में वारेन हेस्टिंग्स के सहयोगी सर विलियम जोंस ने 'एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल' की स्थापना की जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किये। 
  • 1791 ई० में ब्रिटिश रेजीडेण्ट जोनाथन डंकन द्वारा वाराणसी में हिन्दू कानून और दर्शन हेतु 'संस्कृत कालेज' की स्थापना की गई।
  • 1800 ई० में लार्ड वेलेजली द्वारा कम्पनी के असैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिए 'फोर्ट विलियम कालेज' की स्थापना की गई।
  • अंग्रेज धर्म प्रचारक एवं ईसाई मिशनरियों ने भारत में शिक्षा के प्रसार हेतु 'श्रीरामपुर' (कलकत्ता) को अपना केन्द्र बनाया तथा बाइबिल का 26 भाषाओं में अनुवाद किया।
  • 1820 ई० में डेविड हेयर नामक एक अंग्रेज ने कलकत्ता में 'विशप कालेज' की स्थापना की।
  • राजा राममोहन राय, राधाकांत देव, महाराज तेज सेन चंद्र, रायबहादुर, जयनारायण घोषाल आदि के प्रयासों से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई। 
  • राजा राममोहन राय, डेविड हेयर और सर हाईड ईस्ट ने मिलकर कलकत्ता में 'हिन्दू कालेज' की स्थापना की जो कालांतर में 'प्रेसीडेंसी कालेज' बना।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक प्रयास 1813 ई० में किया गया।
  • 1813 के चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल को अधिकार दिया गया कि वह एक लाख रुपये 'साहित्य के पुनरुद्धार और उन्नति के लिए और भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहन देने के लिए तथा अंग्रेजी प्रदेशों के वासियों में विज्ञान के आरंभ और उन्नति के लिए खर्च करें।' 

शिक्षा के माध्यम पर विवाद

  • लोक शिक्षा की सामान्य समिति के दस सदस्य भारत में शिक्षा के माध्यम के विषय में दो गुटों में विभाजित थे, जिसमें एक प्राच्य विद्या समर्थक दल तथा दूसरा आंग्ल शिक्षा समर्थक था।
  • प्राच्य शिक्षा समर्थक दल के नेता एच० टी० प्रिंसेज तथा एच० एच० विल्सन थे। 
  • प्राच्य विद्या समर्थकों का मानना था कि भारत में संस्कृत और अरबी के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाय और भारत में पाश्चात्य विज्ञान और ज्ञान का प्रसार इन्हीं भाषाओं में किया जाय।
  • दूसरी ओर आंग्ल शिक्षा समर्थक दल ने भारत में शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी की वकालत की, वे भारत पर पश्चिमी मानदंडों को पूर्णतः आरोपित करना चाहते थे, उन्हें विश्वास था कि यदि अंग्रेजी भाषा को माध्यम के रूप में अपनाया गया तो आने वाले तीस वर्षों में बंगाल के सभ्य वर्ग में एक भी मूर्तिपूजक नहीं रहेगा। 
  • एक और गुट जो बम्बई में सक्रिय था के नेता मुनरो और एलफिंस्टन ने पाश्चात्य शिक्षा को स्थानीय देशी भाषा में देने की वकालत की।
  • प्राच्य, पाश्चात्य विवाद को उग्र होते देख तत्कालीन ब्रिटिश भारत के गवर्नर-जनरल विलियम बैटिंक ने अपने कौंसिल के विधि सदस्य लार्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति (बंगाल) का प्रधान नियुक्त कर उन्हें भाषा सम्बन्धी विवाद पर अपना विवरण पत्र प्रस्तुत करने को कहा।
  • 2 फरवरी 1835 को मैकाले ने अपना स्मरणार्थ लेख (Macaulay Minute) प्रस्तुत किया।
  • मैकाले ने भारतीय भाषा और साहित्य की तीखी आलोचना करते हुए आंग्ल भाषा एवं साहित्य की प्रशंसा की।
  • मैकाले के अनुसार "यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की आलमारी का एक तख्ता भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है।”
  • मैकाले भारत में अंग्रेजी शिक्षा द्वारा एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता था जो 'रक्त और रंग से भारतीय हो परन्तु उसकी प्रवृत्ति, विचार, नैतिक मापदण्ड और प्रज्ञा अंग्रेजों जैसा हो अर्थात वह ब्राउन रंग के अंग्रेजों का एक वर्ग चाहता था।'
  • 7 मार्च 1835 को गवर्नर-जनरल बैटिंक ने Macaulay Minute को स्वीकार कर आदेश दिया कि भविष्य में कंपनी की सरकार यूरोपीय साहित्य को अंग्रेजी माध्यम द्वारा उन्नत करे तथा सभी खर्च इसी उद्देश्य से किये जायें।

शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन सिद्धान्त, चार्ल्स वुड डिस्पैच (1854), हंटर कमीशन (1882-83)

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