- "शिक्षा के अधोमुखी निस्पंदन सिद्धान्त" का प्रतिपादन लार्ड ऑकलैण्ड द्वारा किया गया।
- मैकाले ने भी इसी सिद्धान्त पर कार्य किया था, लेकिन यह नीति सरकारी तौर पर ऑकलैण्ड के समय में प्रभावशाली हुई।
- शिक्षा के अधोमुखी निस्यदन सिद्धान्त का प्रतिपादन इस उद्देश्य से किया गया कि सर्वप्रथम उच्च वर्ग को शिक्षित किया जाय, इस वर्ग के शिक्षित होने पर छनछन कर शिक्षा का प्रभाव जनसाधारण तक पहुंचेगा।
- शिक्षा के प्रसार का दूसरा चरण लार्ड डलहौजी के समय में शुरु हुआ।
- 1853 के चार्टर एक्ट में भारत में शिक्षा के विकास की जांच के लिए एक समिति के गठन का प्रावधान किया गया।
- सर चार्ल्सवुड की अध्यक्षता में गठित समिति ने 1854 में भारत में भावी शिक्षा के लिए वृहत योजना तैयार की जिसमें अखिल भारतीय स्तर पर शिक्षा की नियामक पद्धति का गठन किया गया।
- चार्ल्स वुड के डिस्पैच को 'भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा' (Magna Carta) कहा गया।
- 'डिस्पैच की प्रमुख सिफारिशें-
(i) सरकार पाश्चात्य शिक्षा, कला, दर्शन, विज्ञान और साहित्य का प्रसार करे।
(ii) उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो, लेकिन देशी भाषाओं को भी प्रोत्साहित किया जाय।
(iii) देशी भाषाई प्राथमिक पाठशालायें स्थापित की जायें और उनके ऊपर (जिला स्तर पर ) ऐंग्लो-वर्नेकुलर हाईस्कूल और सम्बंधित कालेज खोले जायें।
(iv) अध्यापकों के प्रशिक्षण हेतु अध्यापक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना।
(v) महिला शिक्षा को प्रोत्साहन ।
(vi) शिक्षा क्षेत्र में निजी प्रयासों को प्रोत्साहन देने हेतु अनुदान सहायता की पद्धति चलाने की योजना ।
(vii) कंपनी के 5 प्रांत बंगाल, मद्रास, बम्बई, उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में एक-एक शिक्षा विभाग के निर्माण की योजना जो 'लोक शिक्षा निदेशक' के अधीन कार्य करेगा।
(viii) लंदन विश्वविद्यालय के आधार पर कलकत्ता, बम्बई और मद्रास में तीन विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना जिनका मुख्य कार्य परीक्षाएं संचलित करना हो।
- वुड के डिस्पैच की सिफारिशों के प्रभाव में आने के बाद 'अधोमुखी निस्यदन सिद्धान्त' समाप्त हो गया।
- लार्ड रिपन ने 1882 में डब्ल्यू डब्ल्यू० हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया जिसका उद्देश्य 1854 ई० के बाद शिक्षा के क्षेत्र में की गई प्रगति का मूल्यांकन करना था।
- इस आयोग को प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के लिए भी उपाय सुझाने थे। आयोग की सिफारिशें इस प्रकार थीं-
(i) प्राथमिक शिक्षा को महत्व देते हुए कहा गया कि यह शिक्षा स्थानीय भाषा और उपयोगी विषयों में हो, इसका नियंत्रण जिला और नगर बोर्डों को सौंपा जाय।
(ii) उच्च शिक्षा संस्थाओं के संचालन से सरकार को हट जाना चाहिए, इसकी जगह पर सरकार को कॉलेजों के लिए वित्तीय सहायता तथा विशेष अनुदान निर्धारित करना चाहिए।
(iii) हाई स्कूलों में प्रवेशिका परीक्षाओं के अतिरिक्त व्यापारिक एवं व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की जानी चाहिए।
(iv) आयोग ने प्रेसीडेंसी नगरों के अलावा अन्य स्थानों पर महिला शिक्षा हेतु पर्याप्त प्रबन्ध न होने पर खेद प्रकट किया और इसे बढ़ावा देने को कहा।
(v) शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयत्नों को प्रोत्साहन
- हंटर की संस्तुतियों पर सामान्यतया प्रांतीय सरकारों द्वारा कार्य किया गया था।
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