- संथाल विद्रोह 1855-56 ई० में हुआ।
- यह विद्रोह संथाल आदिवासियों का विद्रोह था।
- यह विद्रोह मुख्यत: भागलपुर से राजमहल के बीच केन्द्रित था।
- आदिवासी विद्रोहों में यह विद्रोह सर्वाधिक जबरदस्त विद्रोह था।
- संथाल लोगों ने भूमिकर अधिकारियों के हांथों दुर्व्यवहार, पुलिस के दमन, जमींदारों साहूकारों की वसूलियों के विरुद्ध अपना रोष प्रकट करते हुए विद्रोह कर दिया।
- संथाल विद्रोह को सिद्धू और कान्हू नामक दो संथालों ने अपना नेतृत्व प्रदान किया।
- इस समय गैर आदिवासियों को जो आदिवासियों के क्षेत्र में प्रवेश कर उनके साथ दुर्व्यवहार किया करते थे को 'दिकनाम' से सम्बोधित किया गया।
- सरकार को संथालों के विद्रोह को कुचलने के लिए उपद्रव ग्रस्त क्षेत्रों में मार्शल लॉ लगाना पड़ा तथा इनके विद्रोही नेताओं को पकड़ने के लिए दस हजार का इनाम घोषित किया गया।
- सिद्धू, कान्हू ने घोषणा की कि ठाकुर जी (भगवान) ने उन्हें आदेश दिया है कि वे आजादी के लिए अब हथियार उठा लें।
- सिद्धू अगस्त 1855 तथा कान्हू फरवरी 1886 में पकड़ा गया और मार दिया गया।
- कुंवर सुरेश सिंह द्वारा तीन चरणों में विभाजित आदिवासी विद्रोह का द्वितीय चरण 1860 से 1920 तक चला इस चरण के दौरान आदिवासियों ने तथाकथित अलगाववादी आंदोलन ही शुरू नहीं किया बल्कि राष्ट्रवादी तथा किसान आंदोलनों में भी हिस्सा लिया।
- द्वितीय चरण के आदिवासी या जनजातीय विद्रोहों में प्रमुख इस प्रकार थे।
खारवाड़ विद्रोह
- खारवाड़ विद्रोह संथालों के विद्रोह के दमन के बाद 1870 में प्रारम्भ हुआ।
- यह विद्रोह भू-राजस्व बंदोबस्त व्यवस्था के विरुद्ध हुआ।
भील विद्रोह
- भील विद्रोह राजस्थान के बांसवारा, सूंठ और डूंगरपुर क्षेत्रों के भीलों द्वारा गोविन्द गुरु के सुधारों (बंधुआ मजदूरी से सम्बन्धित) से प्रेरित होकर विद्रोह किया गया।
- 1913 तक यह आंदोलन इतना शक्तिशाली हो गया कि विद्रोहियों ने 'भील राज' की स्थापना हेतु प्रयास शुरु कर दिया, ब्रिटिश सेना ने काफी प्रयास के बाद विद्रोह को कुचला।
नैकदा आंदोलन
- नैकदा विद्रोह मध्य प्रदेश और गुजरात में बनवासी नैकदा आदिवासियों द्वारा चलाया गया।
- इन आंदोलनकारियों ने अंग्रेज अधिकारियों और सवर्ण हिन्दुओं के विरुद्ध दैवीय शक्तियों से युक्त अपने नेताओं के नेतृत्व में ‘धर्म राज' स्थापित करने की दिशा में प्रयास किया।
कोया विद्रोह
- कोया विद्रोह आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी क्षेत्र से शुरू हुआ था और इसने उड़ीसा के मल्कागिरी क्षेत्र को भी प्रभावित किया।
- कोया विद्रोह का केन्द्र बिन्दु चोडवरम् का 'रम्पा प्रदेश' था।
- 1879-80 में कोया विद्रोह को टोम्मा सोरा ने नेतृत्व प्रदान किया।
- कोया विद्रोह जंगलों में उनके पारम्परिक अधिकारों को समाप्त करने, पुलिस द्वारा उत्पीड़न, साहूकारों द्वारा शोषण, ताड़ी के उत्पादन पर कर आदि के विरोध में हुआ।
- कोया विद्रोह के दमन के लिए अंग्रेजी सरकार ने मद्रास इनफैन्ट्री के छह रेजिमेंट का सहयोग लिया था।
- 1886 में कोया विद्रोहियों ने राजा अनन्तश्य्यार के नेतृत्व में रामसंडु (राम की सेना) का गठन कर जयपुर के तत्कालीन शासक से अंग्रेजी राज्य को पलटने के लिए सहायता मांगी।
मुण्डा विद्रोह (1893-1900 ई०), किद्दूर चेन्नम्मा विद्रोह (1824-29 ई०)
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