- 1757 ई० में प्लासी की लड़ाई के बाद अगले सौ वर्षों में भारत में कई बार ब्रिटिश सत्ता को भारतीयों से चुनौतियाँ मिली जिसमें अनेक असैनिक उपद्रव, स्थानीय बगावतें शामिल थी।
- 1757 ई० में प्लासी की लड़ाई और 1857 ई० के महाविद्रोह के बीच ब्रिटिश शासन ने भारत में अपने एक सौ वर्ष पूरे कर लिये थे।
- इस समय के अधिकांश आंदोलन ब्रिटिश शासन के विरुद्ध व्यापक असन्तोष तथा व्यक्तिगत शिकायतों के कारण हुए।
- इन आंदोलनों से जहाँ एक ओर अंग्रेजी प्रशासन द्वारा विस्थापित शासकों तथा सामंतों ने अपनी प्रजा अथवा सैनिकों की सहायता से अपनी खोयी हुई प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का प्रयास किया वहीं सरकार के विरुद्ध किसानों का असन्तोष उनकी भू-राजस्व नीति के कारण था जिनमें बिचौलियों ने आदिवासियों का शोषण किया।
- 1857 ई० के विद्रोह से पूर्व भारत में अंग्रेजी नीति के विरुद्ध पनप रहे असन्तोष का शायद शासक वर्ग को पूर्वाभास हो चुका था। इसीलिए कभी कैनिंग ने यह आशंका व्यक्त की थी कि "हमें यह कदाचित नहीं भूलना चाहिए कि भारत के इस शांत आकाश में कभी भी एक छोटी सी बदली उत्पन्न हो सकती है जिसका आकार पहले तो मनुष्य की हथेली से बड़ा नहीं होगा, किन्तु जो उत्तरोत्तर विराट रूप धारण करके अंत में वृष्टिस्फोट के द्वारा हमारी बर्बादी का कारण बन सकती है।"
- 1857 के विद्रोह के फूटने से पूर्व ही भारत में कई स्थानों पर विद्रोह के स्वर फूटने लगे थे जो इस प्रकार हैं-
1. 1764 में बक्सर के युद्ध के समय हैक्टर मुनरो के नेतृत्व में लड़ रही सेना के कुछ सिपाही विद्रोह कर मीरकासिम से मिल गये।
2. 1806 ई० में बेल्लोरमठ में कुछ भारतीय सैनिकों ने अंग्रेजों द्वारा अपने सामाजिक, धार्मिक रीति रिवाजों में हस्तक्षेप के कारण विद्रोह कर मैसूर के राजा का झण्डा फहरा दिया।
3. 1825 में असम स्थित तोपखाने में विद्रोह हुआ।
4. 1842 में वर्मा युद्ध के लिए भेजी जाने वाली ब्रिटिश भारत की सेना की 47वीं पैदल सैन्य टुकड़ी के कुछ सिपाहियों ने उचित भत्ता न मिलने के कारण विद्रोह कर दिया।
5. 1844 में 34वीं एन० आई० तथा 64वीं रेजिमेंट के सैनिकों ने उचित भत्ते के अभाव में सिंध के सैन्य अभियान पर जाने से इंकार कर दिया।
6. 1849–50 में पंजाब स्थित गोविन्दगढ़ की एक रेजिमेंट ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
1857 ई० के विद्रोह के कारण
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