सोमवार, 27 जनवरी 2025

1857 ई० के विद्रोह का स्वरूप

 

  • 1857 ई० के विद्रोह के स्वरूप के बारे में इतिहासकारों में काफी मतभेद है। 
  • यह मतभेद मुख्यतः तीन बिन्दुओं पर आधारित है- सैनिक विद्रोह, एक राष्ट्रीय संघर्ष या भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संघर्ष, सामंतीय असन्तोष और उस पर प्रतिक्रिया ।
  • उन्नीसवीं सदी के अधिकतर अंग्रेज इतिहासकार 1857 ई० के विद्रोह को एक सैनिक विद्रोह भर मानते हैं, जिनमें अग्रणी नाम है सर जॉनसीले का। 
  • सर जॉनसीले के अनुसार "1857 का विद्रोह पूरी तरह देशभक्ति से रहित स्वार्थपूर्ण सैनिक विद्रोह था, जिसका न तो कोई देशज नेतृत्व था और न ही कोई जनसमर्थन।"
  • 1857 ई० के विद्रोह को सिर्फ सैनिक विद्रोह ही नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें किसानों और असैनिक लोगों की भी भागीदारी थी इसलिए सैनिक विद्रोह को महाविद्रोह का एक कारण भर माना जा सकता है।
  • कुछ अंग्रेज इतिहासकारों द्वारा जैसे एल०ई०आर० रीज ने 1857 ई० के संग्राम को 'कट्टर पंथियों द्वारा ईसाइयों के विरुद्ध संग्राम', कहा।
  • अंग्रेज इतिहासकार टी० आर० होम्ज ने 1857 ई० के संग्राम को 'सभ्यता और बर्बरता के बीच संघर्ष' कहा जो बिल्कुल प्रासंगिक नहीं है।
  • 1908 ई० में प्रकाशित बी०डी० सावरकर की पुस्तक 'फर्स्ट बार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस' (भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम) ने इस धारणा को जन्म दिया कि 1857 का विद्रोह एक सुनियोजित राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम था।
  • सावरकर के मत से सहमति व्यक्त करते हुए डॉ० एस० एन० सेन ने अपनी पुस्तक 'एट्टीन फिफ्टी सेवन' में विचार व्यक्त किया कि "जो कुछ धर्म के लिए लड़ाई के रूप में शुरू हुआ, वह स्वतंत्रता संग्राम के रूप में समाप्त हुआ।" 
  • डॉ० आर० सी० मजूमदार ने सावरकर और सेन के विचारों के प्रति पूर्ण असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि "तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय संग्राम न तो पहला ही, न ही राष्ट्रीय तथा न ही स्वतंत्रता संग्राम था।"
  • इस बात को स्वीकार करना होगा कि 'अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध किसी राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित नहीं था, क्योंकि 1857 में भारत राजनीतिक दृष्टि से एक राष्ट्र था ही नहीं। 
  • "कुल मिलाकर 1857 का विद्रोह मध्यकालीन व्यवस्था के विघटन की प्रक्रिया को रोकने और विगत स्थिति की पुनर्स्थापना का अंतिम प्रयास था।"
  • ब्रिटिश कंजरवेटिव पार्टी के सांसद बेंजामिन डिजरायली ने जुलाई, 1857 ई० को कहा कि "साम्राज्यों का हास और पतन चरबीयुक्त कारतूसों के कारण नहीं होता। इस प्रकार के परिणाम पर्याप्त कारणों और पर्याप्त कारणों में संचित हो जाने की वजह से होते हैं। अतः यह एक राष्ट्रीय विद्रोह है"।
  • निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि 1857 का विद्रोह निःसंदेह साम्राज्यवाद विरोधी और राष्ट्रवादी था क्योंकि इसमें हिन्दुओं और मुसलमान दोनों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और दोनों का एक ही लक्ष्य था, साम्राज्यवादी शासकों को उखाड़ फेंकना, लेकिन विद्रोहियों में राष्ट्रीयता या राष्ट्रत्व की संकल्पना का पूर्ण अभाव था।

1857 ई० के विद्रोह के परिणाम 

Pariksha Pointer

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