- 1857 ई० के विद्रोह की असफलता के कई कारण थे, जिनमें प्रमुख था एकता का अभाव, संगठन और साधनों की न्यूनता।
- 1857 ई० के विद्रोह की न तो कोई सुनियोजित योजना थी न कार्यक्रम, इसलिए यह सीमित, असंगठित और स्थानीय होकर रह गया।
- 1857 ई० के विद्रोह में जहां विद्रोहियों के पास इक्का-दुक्का (तांत्या टोपे, लक्ष्मीबाई) नेता थे, वहीं कंपनी के पास लारेन्स बंधु, निकोलस, आउट्रम, हैवलॉक, एडवर्डस जैसे योग्य सेनापति थे जिन्होंने विद्रोह को कुचलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
- व्रिदोह का स्वरूप सामंतीय था, एक तरफ अवध, रुहेलखण्ड तथा उत्तरी भारत के सामंतों ने विद्रोह का नेतृत्व किया वहीं पटियाला, जींद, ग्वालियर तथा हैदराबाद के राजाओं ने विद्रोह के दमन में सरकार की भरपूर मदद की।
- 1857 ई० के विद्रोह से पूर्व केवल ब्रिटिश सरकार के प्रति घृणा ही एक ऐसी भावना थी जिसके कारण विद्रोही एकजुट थे। अन्यथा उनके पास न तो कोई राजनीतिक दृष्टि थी, न ही भविष्य की कोई पुख़्ता योजना।
- विद्रोह के बारे में जॉन लारेन्स ने कहा कि "यदि उनमें (विद्रोहियों में) एक भी योग्य नेता रहा होता तो हम सदा के लिए हार जाते।"
- 1857 के विद्रोह की उपलब्धि के बारे में निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि यदि किसी ऐतिहासिक घटना का महत्व उसकी तात्कालिक उपलब्धि तक सीमित नहीं रहता तो 1857 का विद्रोह एक ऐतिहासिक त्रासदी भर नहीं थी, इसने अपनी असफलता में अपने महान उद्देश्यों को पूरा किया था।
- 1857 के विद्रोह ने राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन का प्रेरणास्त्रोत बनकर उस उपलब्धि को प्राप्त किया, जो अन्य विद्रोहों के लिए संभव नहीं था।
1857 ई० के विद्रोह का स्वरूप
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