शनिवार, 25 जनवरी 2025

1857 ई० के विद्रोह का प्रसार

 

  • 1857 ई० के विद्रोह के प्रसार के क्रम में भारतीय स्वतंत्रता हेतु प्रथम सशस्त्र विद्रोह 10 मई, 1857 ई० को मेरठ स्थित छावनी की 20 एन० आई० तथा तीन एल० सी० की पैदल सैन्य टुकड़ी ने चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग से इंकार करते हुए कर दिया। 
  • 11 मई को प्रातः शीघ्र ही विद्रोहियों ने अपने उच्चाधिकारियों की हत्या कर दिल्ली की ओर कूच कर दिया।
  • विद्रोहियों ने दिल्ली पर अधिकार कर मुगल बादशाह बहादुर शाह द्वितीय को पुनः भारत का सम्राट और विद्रोह का नेता घोषित कर दिया।
  • दिल्ली विजय का समाचार जैसे ही समूचे देश में फैला, देखते-देखते विद्रोह ने अपनी चपेट में कानपुर, लखनऊ, बरेली, जगदीशपुर (बिहार) झांसी, अलीगढ, रुहेलखण्ड, इलाहाबाद, ग्वालियर को ले लिया। 
  • 4 जून, 1857 को लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत हुई। बेगम हजरत महल ने अपने अल्पायु पुत्र बिरजिस कादिर को नवाब घोषित किया तथा लखनऊ स्थित ब्रिटिश रेजिडेंसी पर आक्रमण किया। 
  • लखनऊ के बाद बेगम हजरत महल ने मौलवी अहमदुल्ला के साथ शाहजहांपुर में भी विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। 
  • बेगम हजरत महल शीघ्र पराजित हो गयीं और भाग कर नेपाल चली गई जहां उनकी गुमनाम मौत हो गई।
  • 5 जून, 1857 को कानपुर में विद्रोह की शुरुआत हुई। यहां पर पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब (धोंधू पंत) ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया, जिसमें उनकी सहायता तांत्याटोपे ने की। 
  • नानासाहब लगातार पराजयों को झेलते हुए अन्ततः नेपाल चले गये जहां से वे जीवन की अंतिम सांस तक अंग्रेजों से लड़ते रहे।
  • नाना साहब ने अंग्रेजों को चुनौती देते हुए कहा था कि "जब तक मेरे शरीर में प्राण है, मेरे और अंग्रेजों के बीच जंग जारी रहेगी, चाहे मुझे मार दिया जाय, या फिर कैद कर लिया जाये, या फांसी पर लटका दिया जाये, पर मैं हर बात का जवाब तलवार से दूँगा।"
  • दिल्ली में 82 वर्षीय बहादुरशाह ने बख्त खाँ के सहयोग से विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया, 20 सितम्बर, 1857 को बहादुरशाह ने हुमायूँ के मकबरे में अंग्रेज लेफ्टिनेंट डब्ल्यू० एस० आर० हडसन के समक्ष समर्पण कर दिया।
  • बहादुरशाह को शेष जीवन रंगून में निर्वासित बिताना पड़ा वहीं उनकी मृत्यु हो गई। 
  • रंगून (बर्मा) में स्थित बहादुरशाह की मजार पर लिखा है कि "जफर इतना बदनसीब है कि उसे अपनी मातृभूमि में दफन के लिए दो गज जमीन भी नसीब न हुई।"
  • 4 जून, 1858 को झांसी में रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में विद्रोह की शुरुआत हुई, जिसमें रानी ने अपने साहसी नेतृत्व में अंग्रेजों के साथ वीरतापूर्वक युद्ध किया, परन्तु झांसी के पतन के बाद रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर की ओर प्रस्थान कर गईं।
  • रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर में तात्या टोपे के साथ विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। अनेक युद्धों में अंग्रेजों को पराजित करने के बाद अंग्रेजी जनरल हयूरोज से लड़ते हुए 17 जून, 1858 को वीरगति को प्राप्त हो गयी। 
  • "रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु पर जनरल हयूरोज ने कहा "भारतीय क्रान्तिकारियों में यहाँ सोयी हुई औरत अकेली मर्द है।"
  • तांत्याटोपे जिनका वास्तविक नाम 'रामचन्द्र पांडुरंग' था, ग्वालियर के पतन के बाद अप्रैल, 1859 में नेपाल चले गये, जहाँ पर एक जमींदार मित्र मानसिंह के विश्वासघात के कारण पकड़े गये तथा 18 अप्रैल, 1859 को फांसी पर लटका दिये गये।
  • तात्याटोपे की गिरफ्तारी मध्य भारत में 1857 के विद्रोह की अन्तिम घटना थी। 
  • जगदीशपुर (आरा, बिहार) में वहाँ के प्रमुख जमींदार कुंवर सिंह ने 1857 के विद्रोह के समय, विद्रोह का झंडा फहराया।
  • अदम्य साहस, वीरता और सेनानायकों जैसे आदर्श गुणों के कारण 1857 के विद्रोह के समय कुंवरसिंह को 'बिहार का सिंह' कहा गया।
  • उन्होंने विद्रोह की मशाल को रोहतास, मिर्जापुर, रीवा, बांदा तथा लखनऊ तक फहराया।
  • अपने जीवन के अन्तिम युद्ध में उन्होंने अंग्रेजों को भारी क्षति के साथ परास्त किया साथ ही युद्ध में जख्मी हो जाने के कारण 26 अप्रैल, 1858 को मृत्यु को प्राप्त हो गये। 
  • फैजाबाद में 1857 के विद्रोह को मौलवी अहमदुल्ला ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। 
  • विभिन्न धर्मानुयायियों को आह्वान करते हुए अहमदुल्ला ने कहा कि "सारे लोग अंग्रेज काफिर के विरुद्ध खड़े हो जाओ और उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दो।"
  • अहमदुल्ला के बारे में अंग्रेजों ने कहा कि "अदम्य साहस के गुणों से परिपूर्ण और दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति तथा विद्रोहियों में सर्वोत्तम सैनिक है।"
  • अहमदुल्ला की गतिविधियों से अंग्रेज इतने चिंतित थे कि उन्होंने इन्हें पकड़ने के लिए 50,000 रु० का नकद इनाम घोषित किया। 
  • 5 जून, 1858 को रुहेलखण्ड की सीमा पर पोवायां में इनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई।
  • रुहेलखण्ड में खान बहादुर खां ने 1857 के विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया, इन्हें मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने सूबेदार के पद पर नियुक्त किया था। कालांतर में इन्हें पकड़कर फांसी दे दी गई। 
  • 1857 के विद्रोह के प्रमुख कर्णधार थे- राणा तुलाराम, तांत्या टोपे, नाना साहब, मौलवी अहमदुल्ला, बेगम हजरत महल, रानी लक्ष्मीबाई, राजा कुंवर सिंह, अमर सिंह आदि ।
  • असम में 1857 के विद्रोह के समय वहां के दीवान मनीराम दत्त ने वहां के अंतिम राजा के पोते कंदपेश्वर सिंह को राजा घोषित कर विद्रोह की शुरुआत की, शीघ्र ही विद्रोह असफल हुआ, मनीराम को फांसी दे दी गई
  • कोटा (राजस्थान) में एक भारतीय सैन्य टुकड़ी ने विद्रोह कर अंग्रेज एजेंट बर्टने की हत्या कर विद्रोह किया, परन्तु विद्रोह को कुचल दिया गया।
  • उड़ीसा में संबलपुर के राजकुमार सुरेन्द्रशाही और उज्जवल शाही ने विद्रोह किया। 
  • गंजाम में सावरों ने राधाकृष्ण दंडसेन के नेतृत्व में पराल की मेड़ी में विद्रोह किया।
  • पंजाब जिसका अधिकांश हिस्सा विद्रोह से अलग रहा, में 9वीं अनियमित सेना (घुड़सवार) के वजीर खां ने अजनाला में विद्रोह किया, कुल्लू में राणा प्रताप सिंह और वीर सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया, लेकिन शीघ्र ही इन सब को फांसी दे दी गई।
  • दक्षिण भारत जिसका अधिकांश हिस्सा विद्रोह के समय शांत था, वहाँ के सतारा, और कोल्हापुर में 1857 के विद्रोह का कुछ प्रभाव देखने को मिला।
  • सतारा में रंगोजी बापूजी गुप्ते ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया। 
  • बंगाल, पंजाब, राजपूताना, पटियाला, जींद, हैदराबाद, मद्रास आदि ऐसे क्षेत्र थे जहाँ पर विद्रोह नहीं पनप सका, यहाँ के शासकों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजी सरकार की मदद भी की।
  • बंगाल के जमींदारों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की मदद की थी।
  • 1857 के विद्रोह में व्यापारी पढ़े-लिखे लोग, भारतीय शासकों ने हिस्सेदारी नहीं ली थी।

1857 ई० के विद्रोह की असफलता के कारण

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