शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

अनौद्योगीकरण (Deindustrialization)


  • सन् 1800 - 1850 ई० के बीच के समय को भारत में 'अनौद्योगीकरण' या 'विऔद्योगीकरण' के नाम से जाना जाता है।
  • अनौद्योगीकरण के इस दौर में जहां ब्रिटेन औद्योगिक क्रांति के दौर से गुजर रहा था वहीं भारत में औद्योगिक पतन का दौर चल रहा था। 
  • 1765-1785 के बीच इंग्लैण्ड में हरग्रीब्ज ने कताई की मशीन, जेम्सवाट ने भाप का इंजन, आर्कराइट ने 'वाटरफ्रेम' क्रॉम्पटन ने 'म्यूल' तथा कार्टराइट ने 'पावरलूम' का आविष्कार किया।
  • 18वीं सदी के यह सभी आविष्कार अपेक्षित शक्ति के अभाव में तब तक उपेक्षित थे, जब तक कि भारत की लूट से संचित पूंजी व्यापक पैमाने पर इंग्लैण्ड नहीं पहुंच जाती। 
  • औद्योगिक क्रांति के इस दौर में भारतीय परम्परागत हस्तशिल्प उद्योग का ह्रास हो गया। जिसका सर्वाधिक दुष्प्रभाव यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था अधिकाधिक विदेशी अर्थव्यवस्था के आधिपत्य में आ गई।
  • भारत में हस्तकला और उद्योगों के पतन ने भारी निर्धनता और बेरोजगारी को जन्म दिया, इसलिए उन्नीसवीं सदी के अंत तक भारत में आधुनिक आधार पर औद्योगीकरण की आवश्यकता राष्ट्रीय आवश्यकता बन गई।
  • "अमरीकी अर्थशास्त्री मॉरिस डी० मॉरिस के अनुसार" औद्योगिक क्रांति के बाद का यह बदलाव अपरिहार्य था, जहाँ औद्योगिक क्रांति के बाद इंग्लैण्ड के पतनशील हस्तशिल्प उद्योग ने बड़े कारखाने और उद्योगों में अपने को खपा कर स्वयं की क्षतिपूर्ति कर ली वहीं भारत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, 1856-60 के दशक में भारत में कारखानों का अस्तित्व ही नहीं था।"
  • परम्परागत भारतीय हस्तशिल्प उद्योग के पतन पर गवर्नर-जनरल बैंटिक की सरकार ने कहा कि "इस दुर्दशा का व्यापार के इतिहास में जोड़ नहीं, भारतीय बुनकरों की हड्डियां भारत के मैदान में बिखरी पड़ी है।" 
  • कार्लमार्क्स के अनुसार "यह अंग्रेज घुसपैठिया था जिसने भारतीय खड्डी और चरखे को तोड़ दिया।" पहले इंग्लैण्ड ने भारतीय सूती माल को यूरोपीय मंडियों से बाहर किया और फिर भारत में जो 'सूतीमाल की मांग थी, उसमें सूती माल की बाढ़ ला दी।" निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि कंपनी तथा ब्रिटिश पूँजीपतियों ने मिलकर भारतीय हस्तशिल्प उद्योग को पूर्णतः नष्ट कर दिया। 
  • 'करथा' और 'चरखा' जो पुराने भारतीय समाज की धुरी के रूप में प्रसिद्ध थे, को तोड़ डाला तथा भारतीय बाजारों को लंकाशायर और मैनचेस्टर में निर्मित कपड़ों से भर दिया। 
वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद) 
  • भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के तीसरे चरण को वित्तीय पूँजीवाद (1860 के बाद) के नाम से जाना जाता है। 
  • 1857 का विद्रोह औपनिवेशिक नीतियों के विरुद्ध भारतीय लोगों, विशेष रूप से किसानों के रोष की सशक्त अभिव्यक्ति थी, विद्रोह के बाद ब्रिटेन और भारत के रूढ़िवादी प्रतिक्रियावादी तत्वों में मेल मिलाप हो गया। 
  • इन तत्वों की वाणिज्यिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सड़कों और रेलों, डाक और तार, बैंक तथा अन्य सेवाओं का विकास प्रारम्भ हुआ, जिसमें अंग्रेजों को पूंजी निवेश के अवसर मिले।
  • अंग्रेज पूंजीपति भारत में पूंजी निवेश के लिए इसलिए आतुर था क्योंकि वह अपनी अतिरिक्त पूंजी को सुरक्षित तरीके से यहां नियोजित कर सकता था, उपनिवेश में मजदूरी सस्ती होने के कारण अच्छा मुनाफा कमा सकता था साथ ही गृह उद्योग के लिए सस्ता कच्चा माल भी निरंतर प्राप्त कर सकता था, इन्हीं उद्देश्यों से प्रेरित होकर भारत में 1860 के बाद ब्रिटिश उपनिवेश का तीसरा चरण वित्तीय पूंजीवाद प्रारम्भ हुआ।
  • 19वीं शताब्दी के मुक्त व्यापार से उत्पन्न अन्तर्विरोधों और 1857 के विद्रोह के परिणामों ने अंग्रेजों को इस बात के लिए विवश किया कि वे भारत में अपने व्यापारिक, सामाजिक हितों की पूर्ति के लिए रेल लाइनों के निर्माण, सड़कों के विकास और सिंचाई के साधनों की ओर ध्यान दिया जाये।
  • 1860 के बाद अंग्रेजों द्वारा भारत में बड़े पैमाने पर पूँजी निवेश की शुरुआत हुई पूंजी निवेश वाले प्रमुख क्षेत्र थे सरकार को ऋण, रेल निर्माण, सिंचाई परियोजनाएं, चाय, कॉफी और रबड़ के बाग, कोयला, खानें, जूट मिलें, जहाजरानी, बैंकिंग आदि।
  • औपनिवेशिक काल के तृतीय चरण में सर्वाधिक पूंजीनिवेश सार्वजनिक ऋण के क्षेत्र में किया गया।
  • ब्रिटिश पूंजी निवेश का दूसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र भारत में 'रेल निर्माण' था। 
  • रेलवे का निर्माण लाभ की गारण्टी व्यवस्था पर आधारित था अर्थात रेल निर्माण में ब्रिटेन का कोई पूंजीपति जितनी पूंजी लगाता था उस पर सरकार से पांच प्रतिशत ब्याज की गारण्टी मिलती थी।
  • अंग्रेजों द्वारा भारत में रेल निर्माण का प्रधान उद्देश्य था भारत के कच्चे माल को देश के अंदर के हिस्सों से बंदरगाहों तक ले जाना।
  • रेलवे निर्माण का दूसरा उद्देश्य था सेना को दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचाना ताकि ब्रिटिश शासकों के प्रति होने वाले किसी भी विद्रोह को सरलता से कुचला जा सके। 
  • 1846 में लार्ड डलहौजी द्वारा भारत में रेल निर्माण की दिशा में प्रथम प्रयास किया गया। 
  • 1853 में डलहौजी के समय बम्बई से थाणे के बीच में प्रथम रेलवे लाइन को बिछाया गया।
  • 1900 के करीब (कर्जन के समय) भारत में रेलवे लाइन का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
  • अंग्रेजों द्वारा वाणिज्यिक और सामरिक उद्देश्यों से भारत में बिछायी गई रेल को कार्ल मार्क्स ने 'आधुनिक युग का अग्रदूत' कहा उसके अनुसार- "आप एक बड़े देश में रेल का जाल बिछाकर उसके उद्देश्यों को बढ़ाने का अवसर दिये बिना नहीं बिछा सकते, इसलिए रेलवे व्यवस्था ही भारत के आधुनिक उद्योग का अग्रदूत बन जायेगी।'
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के तृतीय चरण में भारतीयों द्वारा भी कुछ भारतीय उद्योगों में पूंजी लगाई गई। भारतीय उद्योगों में सूतीवस्त्र पहला उद्योग था जिसमें भारतीयों द्वारा पूंजी लगाई गई। 
  • इस समय गुजरात और बम्बई का महत्वपूर्ण सूती वस्त्र के केन्द्र के रूप में विकास हुआ।
  • 1853 में बम्बई में कावसजी नानाभाई के प्रयासों से सूतीवस्त्र की प्रथम मिल की स्थापना हुई। 
  • 1904-5 तक भारत में कुल करीब 266 कपड़ा मिलें स्थापित हो गई।
  • भारत के कपड़ा उद्योग को 20वीं सदी के स्वदेशी आंदोलन ने प्रोत्साहित किया। 
  • 1855 में बंगाल के सिरसा नामक स्थान पर भारत की पहली जूट मिल की स्थापना हुई।
  • भारतीय औद्योगीकरण की दिशा में भारतीय पूँजी से निर्मित 'टाटा आयरन एण्ड स्टील कंपनी' (1907) एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयास था।
  • भारतीय पूँजी का प्रयोग ज्वाइंट बैंकों में भी हुआ, जिनका मुख्य उद्देश्य था व्यापारिक तथा अन्य गतिविधियों के लिए पैसा उधार देना। 
  • इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण बैंक इस प्रकार थी- पंजाब नेशनल बैंक (1895), बैंक ऑफ इण्डिया (1906), इंडियन बैंक (1907), सेन्ट्रल बैंक (1911), दी बैंक ऑफ मैसूर (1913) आदि। 
  • प्रथम विश्वयुद्ध (1914) का प्रभाव भारतीय उद्योगों पर अच्छा रहा, युद्ध के दौरान साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा में कमी आई, क्योंकि वे सभी शक्तियाँ युद्ध में व्यस्त रहीं।
  • "युद्ध के दौरान देश में बने सामानों को देश के अंदर और देश के बाहर एक बड़ी मंडी प्राप्त हुई, युद्ध के दौरान ठेके मिले, कच्चामाल सस्ते में मिला तथा उत्पादित माल की ऊंची कीमतें मिली। 
  • प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान सर्वाधिक लाभ भारतीय बुर्जआजी वर्ग को मिला जिसमें प्रमुख नाम जमशेदजी टाटा का है।
  • प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर हार्डिंग महोदय ने 1916 में सर थॉमस हालैण्ड के नेतृत्व में एक भारतीय औद्योगिक आयोग की स्थापना की।
  • 1947 में देश की आजादी के समय भारत की स्थिति, जो एक समय 'एशिया का अन्न भण्डार' हुआ करता था आज विश्व का निर्धनतम देश बन गया था।
  • दादाभाई नौरोजी को प्रति व्यक्ति आय का अनुमान लगाने वाला प्रथम राष्ट्रवादी नेता माना जाता है।
  • राष्ट्रीय आय का प्रथम वैज्ञानिक आंकलन डॉ० वी० के० आर० बी० राव ने किया। 

धन का बहिर्गमन (Drain of Wealth)

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