- स्थायी भूमि बंदोबस्त व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा उत्तर प्रदेश के वाराणसी तथा उत्तरी कर्नाटक के क्षेत्रों में लागू था।
- स्थायी भूमि बंदोबस्त के अन्तर्गत समूचे ब्रिटिश भारत के क्षेत्रफल का लगभग 19 प्रतिशत हिस्सा शामिल था।
- इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदार जिन्हें भू-स्वामी के रूप में मान्यता प्राप्त थी को अपने क्षेत्रों में भू-राजस्व की वसूली करके उसका दसवां अथवा ग्यारहवाँ हिस्सा अपने पास रखना होता था और शेष हिस्सा कंपनी के पास जमा कराना होता था।
- इस व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदार काश्तकारों से मनचाहा लगान वसूल करता था और समय से लगान न देने वाले काश्तकारों से जमीन भी वापस छीन ली जाती थी, कुल मिलाकर काश्तकार पूरी तरह से जमींदारों की दया पर निर्भर होता था।
- इस व्यवस्था के लाभ के रूप में कंपनी की आय का एक निश्चित हिस्सा तय हो गया, जिस पर फसल नष्ट होने का कोई असर नहीं पड़ता था।
- स्थायी भूमि बंदोबस्त से दूसरा लाभ यह हुआ कि जमींदार के रूप में कंपनी को एक ऐसे वर्ग का सहयोग मिला जो लम्बे समय तक कंपनी के प्रति निष्ठावान बना रहा।
- स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था के अन्तर्गत जमींदारों की स्थिति अत्यधिक मजबूत हो गई क्योंकि उन्हें भूमि का पूर्णस्वामी स्वीकार कर लिया गया था साथ ही भूमि पर जनसंख्या का दबाव इतना बढ़ गया था कि लोगों के सामने खेती के अलावा कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं था।
'रैय्यतवाड़ी व्यवस्था'
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें