शुक्रवार, 24 जनवरी 2025

ब्रिटिश शासन का भारतीय कृषि पर प्रभाव


  • औपनिवेशिक काल से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था कृषिजन्य अर्थव्यवस्था थी, लेकिन अंग्रेजों ने यहां के परम्परागत कृषि ढांचे को नष्ट कर दिया और अपने फायदे के लिए भू-राजस्व निर्धारण और संग्रहण के नये तरीके लागू किये। 
  • प्लासी के युद्ध के पश्चात बंगाल की दीवानी प्राप्त करने के बाद 1772 ई० में कंपनी के गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल में द्वैध शासन व्यवस्था को समाप्त करके इजारेदारी प्रथा (फार्मिंग सिस्टम) की शुरुआत भू-राजस्व की वसूली के लिए की।
  • 'इजारेदारी प्रथा' के अन्तर्गत कंपनी किसी क्षेत्र या जिले के भू-क्षेत्र से राजस्व वसूली की जिम्मेदारी उसे सौंपती थी, जो सबसे अधिक बोली लगाता था। 
  • क्लाइव के समय में भू-राजस्व का वार्षिक बंदोबस्त होता था जिसे हेस्टिंग्स ने बढ़ाकर पांच वर्ष का कर दिया।
  • फार्मिंग सिस्टम के अंतर्गत भूमि को लगान वसूली हेतु ठेके पर दिये जाने की प्रथा का कालांतर में बंगाल पर बुरा प्रभाव पड़ा, इससे किसानों का शोषण बढ़ा और वे भुखमरी तक पहुंच गये।
  • 1793 में गवर्नर जनरल कार्नवालिस के समय एक दस साला बंदोबस्त लागू किया गया, जिसे 'स्थायी बंदोबस्त' (इस्तमरारी बंदोबस्त) में परिवर्तित कर दिया गया। 
  • बंगाल, बिहार और उड़ीसा में प्रचलित 'स्थायी भूमि बंदोबस्त' जमींदारों के साथ किया गया, जिन्हें अपनी जमींदारी वाले भू-क्षेत्र का पूर्ण भू-स्वामी माना गया।

स्थायी भूमि बंदोबस्त या जमींदारी प्रथा

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