शुक्रवार, 17 जनवरी 2025

प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845-46 ई०)

 


  • इस समय अंग्रेजी सेना ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। लार्ड हार्डिग्ज गवर्नर-जनरल तथा लार्ड गफ इस युद्ध के समय भारत के प्रधान सेनापति थे। 
  • 13 दिसम्बर, 1845 को अंग्रेजी सेना ने सर ह्यूगफ के नेतृत्व में मुदकी नामक स्थान पर लाल सिंह के नेतृत्व वाली सिख सेना को पराजित किया।
  • सिख सेनाओं को क्रमश: फिरोजशाह, ओलीवाल, सोवरांव में पराजित होने के बाद अंग्रेजों के साथ 'लाहौर की संधि' करने के लिए विवश होना पड़ा। 
  • 8 मार्च, 1846 को लाहौर की संधि सम्पन्न हुई। इस संधि की शर्तों के अनुसार
  • (i) सिक्खों ने सतलज नदी के दक्षिणी ओर के सभी प्रदेशों को अंग्रेजों को सौंप दिया।
  • (ii) लाहौर दरबार पर 1.5 करोड़ रु० युद्ध का हर्जाना थोपा गया।
  • (iii) सिक्ख सेना में कटौती कर 20,000 पैदल सेना और 12,000 घुड़सवारों तक सीमित कर दिया गया।
  • (iv) एक ब्रिटिश रेजिडेंट को लाहौर में नियुक्त किया गया।
  • सर हेनरी लारेंस को लाहौर में रेजिडेंट के रूप में नियुक्त किया गया।
  • संधि के बदले अंग्रेजों ने दिलीप सिंह को महाराजा तथा रानी झिंदन को संरक्षिका और लालसिंह को वजीर के रूप में मान्यता प्रदान किया। 
  • लाहौर के आकार को सीमित करने के उद्देश्य से अंग्रेजों ने कश्मीर को 50,000 रु० में गुलाब सिंह को बेंच दिया।
  • 16 दिसम्बर, 1846 को 'भैरोवाल की संधि' सम्पन्न हुई, इस संधि की शर्तों के अनुसार दिलीप सिंह के वयस्क होने तक ब्रिटिश सेना का लाहौर प्रवास निश्चित कर दिया गया 
  • लाहौर का प्रशासन आठ सिक्ख सरदारों की एक परिषद को सौंप कर महारानी झिंदन को 48,000 रु० वार्षिक की पेंशन पर शेखपुरा भेज दिया गया।

द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध (1848-49) 

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