- महाराजा रणजीत सिंह महान विजेता होने के साथ-साथ कुशल प्रशासक भी थे, रणजीत सिंह ने ब्रिटिश एवं फ्रांसीसी सैन्य व्यवस्था के आधार पर एक कुशल सुप्रशिक्षित एवं सुसंगठित सेना का गठन किया था।
- रणजीत सिंह ने यूरोपीय प्रशिक्षकों अलार्ड, बेंतुस, कोर्ट अविटेबिल के सहयोग से एक ऐसी सेना का गठन किया जिसमें यूरोपीय सैनिक एवं अधिकारियों के साथ-साथ सिक्ख, गोरखा, बिहारी, उड़िया, पठान, डोगरे, पंजाबी, मुसलमान आदि शामिल थे।
- राजा रणजीतसिंह की स्थायी सेना 'फौज-ए-आइन' के नाम से जानी जाती थी। जो तत्कालीन समय एशिया में दूसरे स्थान पर थी।
- रणजीत सिंह ने लाहौर में तोपनिर्माण का कारखाना खोला, जिसमें मुस्लिम तोपची नौकरी पर रखे गये थे।
- रणजीत सिंह ने विभिन्न सिख मिसलों को संगठित करने के उद्देश्य से राज्य को 'सरकार-ए-खालसा' नाम दिया तथा अपने द्वारा चलाये गये सिक्कों को 'नानक शाही सिक्के' का नाम दिया।
- रणजीत सिंह के सर्वाधिक विश्वसनीय मंत्री हरि सिंह नौला, दीनानाथ (वित्तमंत्री) और फकीर अजीमुद्दीन थे।
- रणजीतसिंह का कारदार नामक अधिकारी शासक की ओर से राजस्व संग्रहकर्ता, खजांची, लेखाकार, न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट उत्पाद तथा सीमाशुल्क अधिकारी और लोगों का सामान्य पर्यवेक्षण का कार्य करता था।
- इतिहासकार हंटर महोदय ने रणजीत सिंह की फौज के बारे में कहा कि "स्थिरता और धार्मिक जोश में ओलिवर कैम्पवेल के आयरन साइड्स (लौह सैनिक) के बाद इस सेना का कोई जोड़ा नहीं।"
- यूरोपीय (फ्रांसीसी) विक्टर जैक्वीमौ ने रणजीत को "एक असाधारण पुरुष छोटे पैमाने पर एक बोनापार्टा कहा। "
- रणजीत सिंह भारत के प्रथम शासक थे जिन्होंने सहायक संधि को अस्वीकार कर अंग्रेजों के समक्ष समर्पण नहीं किया।
- 1839 में रणजीतसिंह की मृत्यु के बाद उसके अल्पायु पुत्र दिलीप सिंह के सिंहासनारोहण के बीच (1843 तक) तीन अयोग्य उत्तराधिकारी क्रमशः खड़क सिंह, नौनिहाल सिंह और शेर सिंह ने शासन किया।
- 1843 ई० महाराजा रणजीत सिंह के अल्पायु पुत्र दिलीप सिंह राजामाता झिंदन के संरक्षण या प्रतिशासन में सिंहासनारूढ़ हुआ।
- दिलीप सिंह के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया परिणाम स्वरूप प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध शुरू हुआ।
प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध (1845-46 ई०)
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