- 17वीं शताब्दी में भारत विश्व में औद्योगिक माल का सबसे बड़ा उत्पादक देश था।
- भारत से मुख्यतः सूती और रेशमी कपड़ों, मसालों, नील, शक्कर, औषधियों, कीमती रत्न और दस्तकारी की वस्तुओं का पड़ोसी एवं यूरोप के देशों को निर्यात किया जाता था।
- इस समय यूरोपीय लोग भारत से माल खरीदते थे और उसके बदले में बहमूल्य धातु देते थे, जिससे भारत में सोने, चांदी की आवक बढ़ गई और भारत एक समृद्ध देश बन गया।
- मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत में अनेक ऐसे कारण सक्रिय हो गये जिससे यहां के व्यापार और वाणिज्य में गिरावट का दौर शुरू हो गया।
- उत्तरवर्ती मुगल शासकों द्वारा तत्कालीन यूरोपीय व्यापारियों को दी गई उदारतापूर्वक रियायतों ने स्वदेशी व्यापारियों के हितों को नुकसान पहुंचाया। जिससे यहाँ के घरेलू उद्योग प्रभावित हुए।
- 1757 में प्लासी और 1764 में बक्सर के युद्धों के बाद अंग्रेजों ने बंगाल की समृद्धि पर अपना पूर्ण अधिकार जमा लिया परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था, अधिशेष और आत्म-निर्भरता की अर्थव्यवस्था से औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गई।
- प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल के अन्तर्देशीय व्यापार में अंग्रेजों की भागीदारी बढ़ गई, कम्पनी के कर्मचारियों ने उन वस्तुओं जैसे नमक, सुपारी और तम्बाकू के व्यापार पर भी अधिकार कर लिया, जिनका व्यापार उनके लिए प्रतिबंधित था।
- बंगाल की विजय से पूर्व, ब्रिटिश सरकार ने अपने कपड़ा उद्योग के संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाये जिसमें प्रमुख हैं- 1700 ईस्वी में भारत से आने वाले रंगीन एवं छपे हुए वस्त्रों के प्रयोग पर प्रतिबंध, सूती कपड़ों के आयात पर 15 प्रतिशत आयात कर, 1720 में भारतीय रेशमी एवं छपे या रंगे हुए वस्त्रों के प्रयोग पर इंग्लैण्ड में प्रतिबंध आदि।
- भारत पर शासन करने वाले पूर्व विजेताओं एवं अंग्रेजों के मध्य महत्वपूर्ण अंतर यह था कि जहां पूर्वकालिक विजेता धीरे-धीरे भारतीय जीवन का अंग बन गये, वहीं अंग्रेज विजेता भारत का अभिन्न अंग कभी नहीं बन सके, इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ा।
- भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने के पीछे ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य था अपने उद्योगों के लिए कच्चा सस्ता माल प्राप्त करना और अपने उत्पादों को भारतीय बाजार में ऊंची कीमतों पर बेचना।
भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विभिन्न चरण
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