रविवार, 19 जनवरी 2025

डच (1602 ई०)

  


  • 1602 ई० में डच (हालैण्ड) संसद द्वारा पारित प्रस्ताव से एक संयुक्त डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
  • डच ईस्ट इंडिया कंपनी को डच संसद द्वारा 21 वर्षों के लिए भारत और पूरब के देशों के साथ व्यापार करने, आक्रमण और विजयें करने के सम्बन्ध में अधिकार पत्र प्राप्त हुआ। 
  • डचों द्वारा भारत से नील, शोरा और सूतीवस्त्र का निर्यात किया जाता था।
  • डच लोग मसुलीपट्टनम से नील का निर्यात करते थे। 
  • मुख्यतः डच लोग भारत से सूती वस्त्र का व्यापार करते थे। 
  • डच ईस्ट इंडिया कंपनी (Vereenigde Oost Indische Compagnie- VOC) की आरम्भिक पूँजी जिससे उन्हें व्यापार करना था 6,500,000 गिल्डर थी।
  • डचों ने 1605 ई० में मुसलीपट्टम् में प्रथम डच कारखाने की स्थापना की।
  • बंगाल में प्रथम डच फैक्ट्री पीपली में स्थापित की गई लेकिन शीघ्र ही पीपली की जगह बालासोर में फैक्ट्री की स्थापना की गई। 
  • सूरत स्थित डच व्यापार निदेशालय डच ईस्ट इंडिया कंपनी का सर्वाधिक लाभ कमाने वाला प्रतिष्ठान था। 
  • भारत में शीघ्र ही वेरिंगदे ओस्त इंडिसे कंपनी ने मसाला व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया।
  • भारत में डच फैक्ट्रियों की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि पुलीकट स्थित गेल्डिया के दुर्ग के अलावा सभी डच बस्तियों में कोई भी किलेबंदी नहीं थीं।
  • डचों ने पुलीकट में अपने स्वर्ण निर्मित 'पैगोडा' सिक्के का प्रचलन करवाया।
  • बंगाल से डच मुख्यतः सूती वस्त्र, रेशम, शोरा और अफीम का निर्यात करते थे।
  • डचों द्वारा कोरोमण्डल तटवर्ती प्रदेशों से सूती वस्त्र का व्यापार किया जाता था।
  • मालाबार के तटवर्ती प्रदेश से डच मसालों का व्यापार करते थे। 
  • डच ईस्ट इंडिया कंपनी की भारत से अधिक रुचि इण्डोनेशिया के मसाला व्यापार में थी। 
  • डचों ने 1613 में जकार्ता को जीतकर बैटविया नामक नये नगर की स्थापना की।
  • 1641 में डचों ने मलक्का और 1658 में सिलोन पर कब्जा कर लिया। 
  • डचों द्वारा भारत में स्थापित कुछ अन्य कारखाने इस प्रकार है- पुलीकट 1610, सूरत - 1616 ई०, विमलीपट्टम - 1641, करिकाल - 1645. कोचीन 1663, बालासोर, नेगापट्टम - 1658 ई०, चिनसुरा 1653, कासिम बाजार, पटना
  • 1653 में चिनसुरा अधिक शक्तिशाली डच व्यापार केन्द्र बन गया। यहाँ पर डचों ने गुस्तावुल नाम के किले का निर्माण कराया।
  • डचों ने भारत में पुर्तगालियों को समुद्री व्यापार से एक तरह से निष्कासित कर दिया, लेकिन अंग्रेजों के नौसैनिक शक्ति के सामने डच नहीं टिक सके।
  • डचों और अंग्रेजों के बीच 1759 ई० में लड़े गये 'बेदरा के युद्ध' में भारत में अंग्रेजी नौसेना की सर्वश्रेष्ठता को सिद्ध करते हुए डचों को भारतीय व्यापार से अलग कर दिया। 
  • भारत में डचों की असफलता के प्रमुख कारण थे। इसका सरकार के सीधे नियंत्रण में होना, कंपनी के भ्रष्ट एवं अयोग्य पदाधिकारी और कर्मचारी। 
  • भारत में डचों के आगमन के परिणाम स्वरूप यहां का सूतीवस्त्र उद्योग निर्यात की सर्वोच्च स्थिति में पहुंच गया।
  • भारतीय वस्त्रों के यूरोप में निर्यात का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि इंग्लैण्ड आगे चल कर वस्त्रोद्योग का महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया।

Pariksha Pointer

Author & Editor

Please tell us by comments on related topics and the information given in it.

0 comments:

एक टिप्पणी भेजें