गुरुवार, 23 जनवरी 2025

बक्सर का युद्ध (1764 ई०)

 


  • बक्सर जो बनारस के पूर्व में स्थित है, के मैदान में अवध के नवाब, मुगल सम्राट तथा मीरकासिम की संयुक्त सेना अक्टूबर, 1764 ई० को पहुंची, दूसरी और अंग्रेजी सेना हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में पहुंची। 
  • 23 अक्टूबर, 1764 को निर्णायक 'बक्सर का युद्ध' प्रारम्भ हुआ। युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना से असद खां, साहूमल (रोहतास का सूबेदार) और जैनुल अबादीन को धन का लालच देकर फोड़ लिया।
  • शीघ्र ही हैक्टर मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने 'बक्सर के युद्ध' को जीत लिया।
  • मीरकासिम का संयुक्त गठबंधन बक्सर के युद्ध में इस लिए पराजित हो गया. क्योंकि उसने युद्ध के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की थी, शाहआलम गुप्त रूप से अंग्रेजों से मिला (कुछ इतिहासकार मानते हैं) था तथा भारतीय सेना में अनेक प्रकार के दोष अन्तर्निहित थे।
  • बक्सर के युद्ध का ऐतिहासिक दृष्टि से प्लासी के युद्ध से भी अधिक महत्व है क्योंकि इस युद्ध के परिणाम से तत्कालीन प्रमुख भारतीय शक्तियों की संयुक्त सेना के विरुद्ध अंग्रेजी सेना की श्रेष्ठता प्रमाणित होती है। 
  • बक्सर के युद्ध ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर कंपनी का पूर्ण प्रभुत्व स्थापित कर दिया, साथ ही अवध अंग्रेजों का कृपापात्र बन गया। 
  • पी० ई० राबर्ट्स ने बक्सर के युद्ध के बारे में कहा कि "प्लासी की अपेक्षा बक्सर को भारत में अंग्रेजी प्रभुता की जन्मभूमि मानना कहीं अधिक उपयुक्त है।"
  • यदि बक्सर के युद्ध के परिणाम को देखा जाये तो कहा जा सकता है कि जहाँ प्लासी की विजय अंग्रेजों की कूटनीति का परिणाम थी, वहीं बक्सर की विजय को इतिहासकारों ने पूर्णतः सैनिक विजय बताया।
  • प्लासी के युद्ध ने अंग्रेजों की प्रभुता बंगाल में स्थापित की परन्तु बक्सर के युद्ध ने कंपनी को एक अखिल भारतीय शक्ति का रूप दे दिया।
  • बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद शाहआलम जहां पहले ही अंग्रेजों के शरण में आ गया था वहीं अवध का नवाब कुछ दिन तक अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिक सहायता हेतु भटकने के बाद मई 1765 में अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
  • 25 फरवरी, 1765 को मीरजाफर की मृत्यु के बाद कंपनी ने उसके पुत्र नजमुद्दौला को अपने संरक्षण में बंगाल का नवाब बनाया। 
  • मई, 1765 ई० में क्लाइव दूसरी बार बंगाल का गवर्नर बनकर आया, और आते ही उसने शाहआलम और शुजाउद्दौला से संधि की।
  • 12 अगस्त, 1765 ई० को क्लाइव ने मुगल बादशाह शाह आलम से इलाहाबाद की प्रथम संधि की। जिसकी शर्तें इस प्रकार थीं-

1. मुगल बादशाह ने बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी कंपनी को सौंप दी। 

2. कंपनी ने अवध के नवाब से कड़ा और मानिकपुर छीनकर मुगल बादशाह को दे दिया। 

3. एक फरमान द्वारा बादशाह शाहआलम ने नज्मुद्दौला को बंगाल का नवाब स्वीकार कर लिया। 

4. कंपनी ने मुगल बादशाह को वार्षिक 26 लाख रुपये देना स्वीकार किया। 

इलाहाबाद की प्रथम संधि का सबसे बड़ा लाभ कंपनी को बंगाल, बिहार, एवं उड़ीसा के वैधानिक अधिकार के रूप में मिला।


रॉबर्ट क्लाइव (1758-60 और 1764-67 ई०)

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