- तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध की शुरुआत अंग्रेज़ों द्वारा टीपू सुल्तान के ऊपर इस आरोप को लगा कर की गई कि उसने फ्रांसीसियों से अंग्रेजों के विरुद्ध गुप्त समझौता किया है तथा त्रावणकोर पर टीपू ने आक्रमण किया है।
- अंग्रेजों ने मराठों और निजाम के सहयोग से श्रीरंगपट्टनम् पर आक्रमण किया। मिडॉज के नेतृत्व में हुए युद्ध में टीपू सुल्तान पराजित हो गया।
- फरवरी, 1792 में तत्कालीन गवर्नर-जनरल कार्नवालिस ने टीपू के श्रीरंगपट्टनम स्थित किले को घेरकर उसे संधि करने के लिए मजबूर कर दिया।
- मार्च 1792 में अंग्रेजों और टीपू सुल्तान के मध्य श्रीरंगपट्टनम् की संधि सम्पन्न हुई। संधि की शर्तों के अनुसार टीपू को अपने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों और उसके सहयोगियों को देना था साथ ही युद्ध के हर्जाने के रूप में टीपू को तीन करोड़ रुपये अंग्रेजों को देना था।
- श्रीरंगपट्टनम की संधि में यह भी शामिल था कि जब तक टीपू तीन करोड़ रुपये नहीं देगा तब तक उसके दो पुत्र अंग्रेजों के कब्जे में रहेंगे।
- तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के परिणाम स्वरूप मैसूर आर्थिक तथा सामरिक रूप से इतना कमजोर हो गया कि टीपू के लिए इसे अधिक दिनों तक स्वतंत्र रख पाना मुश्किल हो गया।
- तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के बारे में लार्ड कार्नवालिस का यह कथन प्रसिद्ध है कि "बिना अपने मित्रों, को शक्तिशाली बनाये हमने अपने शत्रु को कुचल दिया।"
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799)
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