- जनवरी 1565 में तालीकोटा का निर्णायक युद्ध हुआ जिसने विजयनगर साम्राज्य का अंत कर दिया, उसके अवशेषों पर जिन स्वतंत्र राज्यों का जन्म हुआ, उनमें मैसूर एक प्रमुख राज्य था।
- मैसूर पर वाड्यार वंश का शासन था, इस वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज द्वितीय के शासन काल में राज्य की वास्तविक सत्ता देवराज और नंजराज के हाथों में आ गई थी।
- चिक्का कृष्णराज के समय में दक्कन में मराठों, निजामों, अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में अपने-अपने प्रभुत्व को लेकर संघर्ष चल रहा था।
- मैसूर इस समय मराठों और निजाम के बीच संघर्ष का मुद्दा बना था क्योंकि मराठों ने लगातार मैसूर पर आक्रमण कर उसे वित्तीय और राजनीतिक दृष्टि से कमजोर कर दिया था, दूसरी ओर निजाम मैसूर को मुगल प्रदेश मानकर इस पर अपना अधिकार समझते थे।
- 1749 ई० में नंजराज जो मैसूर राज्य में राजस्व और वित्त नियंत्रक था ने हैदरअली को उसके अधिकारी सैनिक जीवन को शुरू करने का अवसर दिया।
- 1755 में हैदरअली डिंडीगुल का फौजदार बना दिया गया। इसी समय मैसूर की राजधानी श्रीरंगपट्टनम् पर मराठों के आक्रमण का भय व्याप्त हो गया परिणाम स्वरूप हैदरअली ने राजधानी की राजनीति में हस्तक्षेप कर नंदराज और देवराज को राजनीति से संन्यास लेने के लिए विवश कर दिया।
- मैसूर राज्य के हैदर विरोधी गुट ने मराठों को मैसूर पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया, 1760 में हैदर अली मराठों द्वारा पराजित हुआ, लेकिन शीघ्र पानीपत के तृतीय युद्ध में हुई मराठों की पराजय ने हैदर को अपनी स्थिति को मजबूत करने का अवसर दिया।
- 1761 ई० तक हैदरअली के पास मैसूर की समस्त शक्ति केन्द्रित हो गई। 1755 ई० में डिंडीगुल में हैदरअली ने फ्रांसीसियों के सहयोग से एक शस्त्रागार की स्थापना की।
- प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-69 ई०)
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