गुरुवार, 16 जनवरी 2025

पंजाब

 


  • मुगलकाल में पंजाब सबसे समृद्ध और उपजाऊ राज्यों में शामिल था तथा उस समय पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर थी। 
  • 1699 ई० में सिक्खों के दसवें तथा अंतिम गुरु गोविन्द सिंह जी ने व्यक्तिगत गुरुत्व के सिद्धान्त को खत्म कर खालसा की स्थापना की, जिसके कारण सिक्खों को विशिष्ट वेषभूषा केश, कंघा, कृपाण, कड़ा, कच्छ आदि धारण करना होता था।
  • गुरु गोविन्द की मृत्यु के बाद गुरु की परम्परा समाप्त हो गई। उसके शिष्य बंदाबहादुर ने सिक्खों का नेतृत्व संभाला।
  • गुरुत्व के सिद्धान्त के खत्म होने के बाद सिक्खों की पवित्र पुस्तक 'ग्रंथसाहिब' ने धर्म गुरु का स्थान ले लिया और सामान्य सिक्खों की खालसा सभा ही लौकिक मार्गदर्शक तथा नीति निर्धारक बन गई।
  • बंदाबहादुर का बचपन का नाम लक्ष्मणदेव था, उसने पंजाब के सिक्ख किसानों को एकत्र करके मुगलों से लगातार आठ वर्ष (1707-1715) तक संघर्ष किया तथा सिक्खों को दुर्जेय शक्ति बनाया।
  • बंदाबहादुर को उसके शिष्य सच्चा पादशाह अथवा सच्चा सम्राट कहते थे। 
  • 1716 ई० में मुगल बादशाह फर्रुखसियर द्वारा बंदाबहादुर की उसके पुत्र समेत हत्या कर दी गई, जिसके बाद सिक्ख राष्ट्र का भाग्य निम्नतम् स्तर पर पहुंच गया। 
  • फर्रुखसियर की मृत्यु और मुहम्मदशाह के समय पंजाब पर नादिरशाह के आक्रमण (1739 ई०) ने सिक्खों को एक बार फिर अपने को संगठित करने का अवसर प्रदान कर दिया।
  • 1726 में पंजाब में नियुक्त मुगल सुबेदार जकारिया खान ने सिक्खों से समझौता करने के उद्देश्य से उन्हें जागीर एवं नवाबी देने का प्रस्ताव पेश किया।
  • जकारिया खान द्वारा फैजलपुर के कपूर सिंह को जमींदार नवाब के रूप में मान्यता दी गई। कालांतर में कपूर के नेतृत्व में ही पंजाब के सिक्ख कृषक जो पृथक-पृथक जत्थों में बंटे थे, को संगठित कर एक ऐसे दल के रूप में विकसित किया जो दल खालसा के रूप में अस्तित्व में आया।
  • कपूर सिंह की मृत्यु के बाद सिक्खों की धार्मिक सेना के रूप में विकसित दल खालसा को जस्सा सिंह अहलूवालिया ने अपना नेतृत्व प्रदान किया। 
  • जस्सा सिंह के नेतृत्व में ही दल खालसा 12 स्वतंत्र मिसल या जत्थों में विभाजित हो गया था।
  • कनिघंम ने यहां 'मिसल' को अरबी भाषा का शब्द बताया है जिसका अर्थ है 'समान या एक जैसा'।
  • प्रत्येक मिसल का अपना एक झण्डा, नाम तथा निशान होता था, सभी मिसलों के नेताओं की एक समिति होती थी जो सभी मिसलों के कार्यों का संचालन करती थी।
  • अफगान आक्रमण तथा मुगल सुबेदारों के अत्याचारों के कारण उस समय पंजाब में अव्यवस्था की स्थिति थी, दल खालसाँ ने अव्यवस्था की स्थिति को समाप्त करने के उद्देश्य से 1753 में राखी प्रथा आरंभ की।
  • राखी प्रथा के अन्तर्गत प्रत्येक गांव से उपज का 1/5 भाग लेकर दल खालसा उसकी सुरक्षा का प्रबंध करता था, इस प्रणाली द्वारा ही सिक्खों का राजनीतिक शक्ति के रूप में विकास हुआ।
  • उत्तरवर्ती मुगल शासकों द्वारा अहलूवालिया मिसल के संस्थापक सरदार जस्सा सिंह को 'सुल्तान-ए-कौम' की उपाधि मिली। जस्सा सिंह ने स्वयं को बादशाह घोषित कर अपने नाम के सिक्के जारी किये। 
  • पंजाब में पटियाला, नाभा तथा जींद रजवाड़ों की स्थापना फुलकियां मिसल द्वारा की गई थी।
  • 1765 में अहमदशाह अब्दाली ने फुलकियां मिसल के सरदार आला सिंह को 'तबल-ओ-आलम', एक नगाड़ा और एक निशान भेंट किया। 
  • आधुनिक पंजाब के निर्माण का श्रेय सुकरचकिया मिसल को दिया जाता है, इसी मिसल में महाराजा रणजीत सिंह का जन्म हुआ।
  • 1763 से 1773 के बीच सिक्खों ने अपनी सत्ता का विस्तार सहारनपुर से पश्चिम में अटक तक दक्षिण में मुल्तान से उत्तर में कांगड़ा और जम्मू तक कर लिया।
  • सुकर चकिया मिसल के प्रमुख माहा सिंह के पुत्र रणजीत सिंह थे। माहा सिंह की मिसल का अधिकार राबी तथा चेनाब के बीच के क्षेत्र पर था। 
  • सिक्खों ने 1764 में पंजाब से अफगान आक्रमणकारियों के प्रभाव को खत्म करके देग, तेग और फतेह मुद्रालेख युक्त शुद्ध चाँदी के सिक्कों का प्रचलन करवाया जो पंजाब में सिक्ख प्रभुता के प्रथम उद्घोषक माने जाते हैं।

रणजीत सिंह और पंजाब (1792-1839)

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